Daily Archives: 05/12/2010

हाथी चला बाज़ार में – कबीर

हाथी चला बाज़ार में
बिच्छू मरते दम तक डंक मारेगा
संत डूबते बिच्छू को हर बार किनारे पर लाएगा
चालाक लोमड़ी काले कौए की काएं-काएं को मीठी तान बताएगा
पेड़ का कौआ चालाक लोमड़ी की बातों में आएगा
चोंच खोल कर अपनी रोटी उस के भेंट कर जाएगा

और जब भी कभी मस्तन हाथी अपनी राह चलेगा
टेढ़ी पूंछ वाला कुत्ता भोंकेगा, भों-भों की खड़ताल बजाएगा

कबिरा भी बाज़ार में खड़ा-खड़ा एकतारे की तार छेड़ेगा
हथकरघे पे झीनी-मिनी चादर बनाएगा
फिर इक दिन उसी बाज़ार में मर जाएगा
बाजारू लोग उसकी बोली लगायेंगे
अपना अपना माल बताएंगे
लड़ते-कटते खुद अर्थी-कब्र चढ़ जाएँगे

लेकिन फिर भी बिच्छू डंक मारेगा,
संत बिच्छू की जान बचाएगा
कौआ लोमड़ी की बातों में आएगा
लोमड़ी मज़े से दावत उडाएगा
कुत्ता भौं-भौं कर पूंछ हिलाएगा
और हाथी अकेले ही जानिबे मंजिल को चला जाएगा और
कभी न कभी तो अकेले ही सड़क पार कर पाएगा
पगडण्डी छोड़ जाएगा


सौजन्य: कोलाज

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ઈદમ અપિ ગમિષ્યતિ – ભોળાભાઈ પટેલ



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હું કરું, હું કરું, એ જ અજ્ઞાનતા

હું કરું, હું કરું, એ જ અજ્ઞાનતા,

શકટનો ભાર જેમ શ્વાન તાણે.

-નરસિંહ મેહતા

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